।।श्री।।
।। पित्रदोक्ष ।।
पित्र याने हमारे गुजरगये पुर्वज. जैसे आपने माता पिता हमसे विभिन्न प्रकार कि अपक्षाये रखते है ठिक उसि तराह हमारे पित्र हमसे अपेक्षा रखते है. लेहिन हमसे यदि अपेक्षा कि जगह उपेक्षा हो जाये तो पित्र हमसे नाराज होकर हमे श्राप देते है उसि को पित्र दोक्ष केहेते है.
हिंदु संकृति सबसे पुरानि संकृति है. और ईस संस्कृति के अनुसार आत्मा अमर है ईसि कारण हमारे पित्र देह स्वरूप भलेहि न हो लेकिन आत्मा स्वरूप उनका अस्तीत्व कभि नष्ट नहि होता ईसि लिये अपने पुर्व जोका पिंडदान तर्पनादि कर्म हमे करनाहि चाहिये.
जो वंक्षज अपने पुर्वजनोंका पिंडदान तर्पनादि कर्म नहि करते उनके पुर्वज अंतरिक्ष लोक मे भुखे और प्यासे रेह जाते है ईसि लिये वे श्राप देते है.
अगर हम नित्य पिंडदान नहि करते तो हमारा अन्न विष समान हो जाता है.
।। पित्र दोक्ष के लक्षण ।।
घर मे हमेशा अशांति होना,कितना भि धन कमाके के बाद भि बरकत ना होना,संतति न होना,पुरा परिवार कष्ट मे होना ईत्यादि कारण पित्र दोक्ष हो सकते है.
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के व्दारा
दामोदर माहाराज नासिक